Tuesday, March 30, 2010

इक रोज़

   इक रोज़
   इन गुलाबों
   की महक
   यूँ न होगी,
   तेरी शोख हंसी
   की खनक यूँ न होगी,
   ख्वाब से भरे दो आँखों
 की चमक यूँ न होगी,
 तितलियों सा
 रंग तेरा यूँ न होगा
 तेरी मीठी बोली
 की चहक यूँ न होगी
 अल्हड इस
 जवानी की
 छनक यूँ न होगी.
 स्याह से सफ़ेद
 बालों का सफ़र
 यहाँ होगा,
 फिर चेहरे की झुर्रियों
 से सामना होगा
 और कदम कुछ सुस्त होंगे.
 मगर उन झुर्रियों में भी
 ये नूर होगा,
 बूढी आँखों में भी
 इस इश्क का
 सुरूर होगा,
 और सांझ ढले
 हाथों में तेरा
 हाथ होगा
 और ये साथ
 जन्मों का
 साथ होगा....