इक रोज़
इन गुलाबों
की महक
यूँ न होगी,
तेरी शोख हंसी
की खनक यूँ न होगी,
ख्वाब से भरे दो आँखों
की चमक यूँ न होगी,
तितलियों सा
रंग तेरा यूँ न होगा
तेरी मीठी बोली
की चहक यूँ न होगी
अल्हड इस
जवानी की
छनक यूँ न होगी.
स्याह से सफ़ेद
बालों का सफ़र
यहाँ होगा,
फिर चेहरे की झुर्रियों
से सामना होगा
और कदम कुछ सुस्त होंगे.
मगर उन झुर्रियों में भी
ये नूर होगा,
बूढी आँखों में भी
इस इश्क का
सुरूर होगा,
और सांझ ढले
हाथों में तेरा
हाथ होगा
और ये साथ
जन्मों का
साथ होगा....
Tuesday, March 30, 2010
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कविता अच्छी है लेकिन प्रकाशित ठीक प्रकार से नहीं हुई है। फोटो के नीचे ही सारी पंक्तियों को डालो। इम्पेक्ट नहीं आ रहा।
ReplyDeleteनूर-ए-इश्क, दौर-ए-उम्र का मोहताज़ नहीं होता....प्रेम शाश्वत है, अजर है...
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