Wednesday, January 27, 2010

गुलाब की पंखुडियां



आज भी महकती हैं

तुम्हारे गुलाब की कलियाँ

मेरे अंतरंग में।

खुलती हथेलियों में

जब गुलाब की पंखुडियां

अलसाई सी आंख खोलती हैं

तब मदमाते, लहराते तुम आते हो।

हर सांझ

बनते हैं कई किरदार मेरी कल्पनाओं में

बनते हैं, बिगड़ते हैं

रह जाते हो तो तुम

और वही

तुम्हारी गुलाब की पंखुडियां...

4 comments:

  1. रह जाते हो तो तुम

    और वही

    तुम्हारी गुलाब की पंखुडियां...

    wah kya bata kahi hai ane...dil me utar gayee

    sunder

    aur apki har rachna ka chitra bhi perfect hai

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  2. un PHULON se kya Dosti karoge jo 1 bar KHILE or MURJHA gaye, dosti to HUM jaise KANTO se karo jo 1 bar chubhe aur baar baar yaad aye

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