Wednesday, January 27, 2010

तुमने कुछ कहा


तन्हाई के गलियारों से

सांझ के बहते झरने से

घर लौटते पंछियों के

कलरव के बीच से

गुजरते हुए

हंसों सी सच्ची छलकती

मुस्कान में से,

क्षितिज के किनारे से होते हुए

छलकती, महकती, मदमाती

कुछ उलझती , कुछ सुलझती

हिम सी ठंडक हथेलियों में लिए

चंदन सी महक

चिड़ियों की चहक

लिए हरसिंगार के फूलों की

खुशबू के झोकें के

साथ अन्दर आकर

हलके से गाल थपथपाकर

बालों को ज़रा संवारकर

हौले से कान में तुमने कुछ कहा...

5 comments:

  1. चारू जी, आदाब

    तन्हाई के गलियारों से.....
    .....क्षितिज के किनारे से होते हुए
    ..........बालों को ज़रा संवारकर
    हौले से कान में तुमने कुछ कहा...

    आपकी प्रस्तुति अलग और ख़ूबसूरत अंदाज़ में है.

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  2. Shahid ji...aapka bahut shukriya...aapne meri abhivyakti ko samjha aur saraha...aise hi apna protsaahan dete rahiyega...aapke comments ka ab intezaar rahega...

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  3. जाने नमी आसमाँ की है
    या इन आँखों की अमानत है नमी.
    बहुत सुंदर बात कही है |

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  4. ये वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा दीजिए टिप्पणी देने में परेशानी होती है|

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  5. ...dhanyawad Naresh ji..main dekhti hu..

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